Sunday, June 17, 2018

हर कोई नौकरी चाहता है लेकिन काम करना कोई नहीं चाहता।

पिछले हफ्ते जब मैं लखनऊ छुट्टी पर गया था, मैंने उन लोगों से मिला जिनके पास नौकरी थी लेकिन वे काम करने के इच्छुक नहीं थे। इस प्रकार के लोग न केवल सरकारी क्षेत्र में हैं बल्कि वे Private Sector में भी हैं। मैं पहले Private Sector के कर्मचारी के बारे में बात करूंगा।
लखनऊ के कुछ ऐतिहासिक स्थानों को देखने के बाद हम थक गए थे, इसलिए हमने फिल्म देखने का फैसला किया ताकि हम वहां बैठकर आराम कर सकें। हम सहारागंज लखनऊ में PVR सिनेमा गए और फिल्म “जुरासिक वर्ल्ड” के लिए दो टिकट पीवीआर की Ticketing Executing से मांगा। लेकिन उसका बात करने का तरीका ऐसा था जैसे मैंने उसे ऐसा कुछ करने के लिए कह रहा था जो उसका काम नहीं था। इसके अलावा जब मैंने उससे कहा कि हमें Meal Combo नहीं चाहिए, सिर्फ Movie Ticket चाहिए, तब उसने बहुत ही बदतमीज़ी से जवाब दिया। उसने कहा, “150 रूपए में Combo कहां मिलता है।” और फिर शशी को उसे सिखाना पड़ा कि उसे ग्राहक से कैसे बात करनी चाहिए। उसने उससे (पीवीआर कर्मचारी) कहा कि अगर वह काम करने में interested नहीं है तो उसे ग्राहक के साथ बदतमीज़ी करने के बजाय इस्तीफा दे देना चाहिए। साथ ही उसने Public Dealing में आने से पहले कुछ शिष्टाचार सीखने के लिए उससे (पीवीआर कर्मचारी से) कहा। इतनी डांट खाने के बाद, उसने माफ़ी  मंगीऔर वह भी बदतमीज़ी से। अगला ग्राहक काउंटर पर आया और हम Side हो गए लेकिन उस ग्राहक से Deal करते हुए भी हमने उसके (पीवीआर कर्मचारी) व्यवहार में कोई बदलाव नहीं देखा। वह अभी भी ऐसे behave कर रही थी जैसे वह कहना चाहती है, “बस अपना टिकट लो और भांड में जाओ”। हम वहां से चले गए क्योंकि हम समझ गए कि महिला यह समझने की कोशिश नहीं कर रही थी कि हम क्या कह रहे थे। और उसके लिए नौकरी बिना कुछ काम किये पैसा पाने का एक जरिया मात्र था।
अगले दिन हम लखनऊ में चारबाग बस स्टेशन गए क्योंकि हमें प्रतापगढ़ जाना था। हम सिर्फ ये पूछने के लिए पूछताछ काउंटर गए कि A.C. Bus किस प्लेटफार्म पर आती है। लेकिन वहां भी, कर्मचारी आपस में गप्पे मार रही थी और हमें ऐसे अनदेखा कर रही थी जैसे हमने उससे उसकी किडनी मांग ली हो। हमने बस के बारे में 3-4 बार पूछा लेकिन उसे उससे कोई जवाब नहीं मिला। जब भी हम उससे  बस के बारे में पूछते थे, वह वापस अपने Colleagues से फालतू के गप्पे मारने लग जाती पर उसने हमें Information नहीं दी। अंत में, मुझे उससे कहना पड़ा, “फ्री की रोटी ही तोड़नी है क्या, कुछ काम भी कर लिया कर।” फिर भी, उसने मुझे जानकारी नहीं दी और हमें चाय वाले से जानकारी प्राप्त करनी पड़ी।
इन दो घटनाओं के अलावा, मैंने इस तरह के बहुत से लोगों को, काम पर और अन्य स्थानों पर देखा है, जिनके पास नौकरी है लेकिन वे बिल्कुल भी काम करना नहीं चाहते हैं। मैं सिर्फ उनसे पूछना चाहता हूं कि जब उन्हें काम करना ही नहीं है तो Governments से Job Creation की बात क्यों करते हैं। इन लोगों को यह जान लेना  चाहिए कि वे फालतू के, निकम्मे, बेकार  और घटिया लोग हैं जो किसी भी समाज में सम्मानजनक स्थान पाने के योग्य नहीं हैं।

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